काम, क्रोध,लोभ,मोह, और अहंकार को त्यागने का बड़ा महत्व स्वामी विवेकानंद पुरी महाराज

 52वें निर्वाण दिवस पर विशाल संत समागम सम्मेलन आयोजित 


हरिद्वार। तुरियानंद आश्रम भोपत वाला में आयोजित बार्षिक सत्संग समारोह को संबोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि वैदिक ग्रंथों में चार पुरुषार्थ उनको पाने के लिए पांच विकार जो कि काम, क्रोध,लोभ ,मोह, और अहंकार को त्यागने का बहुत ही बड़ा महत्व है। लेकिन क्या यह विकार पूर्ण रूप से छोड़ने योग्य है या ऐसा कुछ ही बुद्धिजीवियों का सोचना है या फिर मानव सचमुच इन विकारों को पूरी तरह से त्याग करने में सक्षम है। 1008 स्वामी तुरीयानंद महाराज के 52वें निर्वाण दिवस के अवसर पर स्वामी तुरीयानंद सत्संग सेवा आश्रम भूपतवाला में  विशाल संत समागम सम्मेलन आयोजित किया गया। संत समागम की अध्यक्षता तत्कालीन गद्दीनशीन 1008 स्वामी विवेकानंद गिरी महाराज ने की। समागम में दूर दूर से आए संतो ने अपने अपने मुखार बिंद से अमृत वर्षा की। संत समागम को संस्था के सभी ट्रस्टियों ने बड़ी धूमधाम से मनाया। कार्यक्रम के अंत में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। सत्संग समारोह में मौजूद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद गिरी महाराज ने कहा कि हमारे धर्म ग्रंथों में धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ जीवन का मुख्य उद्देश्य है। धर्म का ज्ञान होना चाहिए तभी काम में कुशलता आती है कर्म कुशलता से ही व्यक्ति जीवन में अर्थ को अर्जित कर पाता है। काम वह अर्थ को धर्म पूर्वक भोगते हुए मोक्ष यानी पुनर्जन्म से छुटकारा पाने की कामना करनी चाहिए। उन्होंने इस अवसर पर उन्होंने गृहस्थ जीवन को चलाने के लिए इन विकारों को पूर्ण रूप से त्याग नही कर सकते है, इसलिए महापुरुषों, धर्म ग्रंथों में जीवन के वास्तविक लक्ष्य की पूर्ति हेतु चार पदार्थ यानी धर्म ,अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति हेतु एक और मार्ग बतलाया है है और वह है ध्यान और साधना का मार्ग जो साधक लक्ष्य तक पहुंचता है वह अपने मूलभूत की ओर प्रभु की अनुभूति कराता है और प्रकृति पदार्थ सोई हुई शक्तियों को जागृत करता है। अंत में स्वामी विवेकानंद गिरी महाराज एवं सभी ट्रस्ट्रियों ने सम्मेलन में आए सभी  संतो का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से महामंडलेश्वर स्वामी विश्वात्मानंद पुरी महाराज,महंत ज्ञानदेव सिंह महाराज,महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद महाराज,डॉ पदम प्रकाश सुवेदी,आचार्य डॉ स्वामी हरिहरानंद महाराज,स्वामी भगवत स्वरूप महाराज,स्वामी प्रेमानंद महाराज,स्वामी शिवानंद महाराज,स्वामी गोविंद दास महाराज, स्वामी दिव्यांश महाराज,स्वामी बाल सूरज दास महाराज,स्वामी दिव्य चैतन्य महाराज, स्वामी नारायण आनंद महाराज,स्वामी मोहन चैतन्य,स्वामी प्रज्ञान चैतन्य महाराज,एवं तुरीयानंद सत्संग सेवा आश्रम के समस्त ट्रस्टीगण मौजूद रहे।