भगवान भी भक्तों की भावनाओं पर ही आकर्षित होते हैं- स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती

 हरिद्वार। श्रीगीता विज्ञान आश्रम परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि प्रेम ही परमात्मा है और भगवान भी भक्तों की भावनाओं पर ही आकर्षित होते हैं। मान का पान ही पर्याप्त होता है जबकि अपमान के साथ प्राप्त हुई माया व्यर्थ होती है,वे आज राजा गार्डन स्थित हनुमान मंदिर हनुमत गौशाला में चल रही भागवत कथा में सृष्टि की रचना का सार समझा रहे थे। सतयुग से कलयुग तक की सृष्टि की रचना का विस्तार पूर्वक वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि सतयुग में मंत्र सृष्टि से समाज का संचालन होता था जो त्रेता तक चला और भगवान राम का अवतार भी मंत्र सृष्टि से ही हुआ। मंत्र सृष्टि की संख्या सीमित होने के कारण ही सृष्टि के रचयिता ने मनु और सतरूपा को वैवाहिक बंधन में बांधकर मैथुन सृष्टि का शुभारंभ कराया। जीवन के 16 संस्कारों में विवाह संस्कार को सबसे महत्वपूर्ण संस्कार बताते हुए उन्होंने कहा कि पति-पत्नी यदि संयम एवं संस्कारित जीवन यापन करें तो उनके गर्भ से महापुरुष की उत्पत्ति होती है। कलयुग में बदल रहे संस्कारित जीवन को पुनः प्राचीन स्वरूप में आत्मसात करने का आवाहन करते हुए कहा कि हमें पाश्चात्य सभ्यता को भुलाकर अपनी प्राचीन परंपरा पर लौटना होगा तभी हम और हमारा राष्ट्र महान होने का गौरव प्राप्त कर सकेंगे। भागवत प्रेमियों को महानिर्वाणी अखाड़ा के महामंडलेश्वर एवं श्री रामेश्वर सदानंद आश्रम के अध्यक्ष स्वामी रामेश्वरानंद सरस्वती ने अपने आशीर्वचनों से अभिसिंचित करते हुए कहा कि साधना करने वाले ही शतायु संत होते हैं और भाग्यशाली भक्तों को ही वास्तविक संत एवं सच्चे सद्गुरु की प्राप्ति होती है। उन्होंने सभी भागवत प्रेमियों को सौभाग्यशाली होने का वास्ता देते हुए कहा कि गुरु पूजा जैसे विशेष अवसर पर तीर्थ स्थल और गुरु गद्दी पर श्रीमद् भागवत कथा श्रवण का सौभाग्य उसी को प्राप्त होता है जिस पर सद्गुरु की कृपा होती है।