कलयुग में श्रीमद भागवत कथा श्रद्वालुओं के कल्याण का मार्ग है


 हरिद्वार। संन्यास आश्रम संयास रोड कनखल में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तहत भीष्म स्तुति तथा माता के गर्भ में पालने वाले शिशु की व्यथा सुनाते हुए भक्तों को भाव विभोर कर दिया। उन्होंने बताया कि जब मां के गर्भ में कोई शिशु पलता है तो प्रथम माह से लेकर 9 महा पूर्ण होने तक की शिशु की व्यथा प्रकाश डालते हुए महामंडलेश्वर स्वामी जनकपुरी जी महाराज ने कहा जब शिशु में जीव की उत्पत्ति हो जाती है और उसका शरीर पूर्ण होता है तो वह माता के गर्भ में उल्टा लटक कर उस दिव्य परमात्मा की स्तुति करता है की है। प्रभु मुझे इस व्यथा से मुक्ति दिलाओ जब भगवान उसकी सुनते हैं तो नौ महापूर्ण होने पर उसे उस व्यथा से मुक्ति मिलती है। स्वामी जनकपुरी जी ने कहा अगर शिशु सात माह में जन्म ले लेता है तो वह शरीर से दुर्बल कमजोर तो हो सकता है किंतु मस्तिष्क से बड़ा ही बुद्धिमान होता है अष्टम माह में उत्पन्न शिशु कभी भी जीवित उत्पन्न नहीं होता 9 महीने पूर्ण होने के बाद दसवें माह में जो शिशु जन्म लेता है, वह संपूर्ण रूप से विकसित तथा ज्ञानवान बुद्धि से पूर्ण रूप से सक्षम होता है। स्वामी जनकपुरी जी महाराज ने कहा श्रीमद् भागवत कथा इस कलयुग में भक्तों के कल्याण का मार्ग है। इस पावन कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य को ज्ञान सुख समृद्धि वैभव यश कीर्ति की प्राप्ति होती है तथा उसके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है। इस कथा के दूर से भी कान में पडने मात्र से मनुष्य का कल्याण होता है उसे सुख समृद्धि वैभव की प्राप्ति होती है। श्रीमद् भागवत कथा मनुष्य जीवन दाहिनी मोक्ष दाहिनी कथा है व्यवस्थापक स्वामी गंभीरानंद जी महाराज ने बताया कि कथा व्यास के मुख से 28 सितंबर तक भक्तजन कथा सुनकर अपने जीवन को धन्य तथा कृतार्थ बना रहे हैं।