हरिद्वार। बिल्केश्वर कालोनी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुए बताया कि मनुष्य को कर्मो का फल भोगना ही पड़ता है। कर्मो के अनुसार ही सुख और दुख की प्राप्ति होती है। कर्म तीन प्रकार के होते हैं। संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म एवं क्रियमाण कर्म। संचित कर्म वह हैं जो करने के बाद इकट्ठा हो जाते हैं। संचित कर्म बीज की तरह पड़ा रहता है और समय आने पर फल देता है। सुख एवं दुख के रूप में जो फल हम भोग रहे हैं, वह प्रारब्ध हैं तथा वर्तमान में हम जो कर रहे हैं उसे क्रियमाण कर्म कहा जाता है। क्रियमाण कर्म ही आगे चलकर भाग्य बनता है। शास्त्री ने बताया कि भीष्म पितामह जब बाणों की शैया पर पड़े हुए थे। तब उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मुझे अपने सौ जन्मों का स्मरण है। मैंने कोई भी पाप कर्म नहीं किया। फिर मुझे यह बाणों की शैया क्यों मिली। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भीष्म पितामाह आपको सौ जन्मों का स्मरण तो है, परंतु उससे पूर्व जन्म का आपको स्मरण नहीं है। उससे पूर्व आपने एक टीट्ठी नामक कीड़े को कांटा लगा कर झाड़ियों में कांटों में फेंक दिया था। उसी के परिणामस्वरूप आपको बाणों की शैया प्राप्त हुई है। यह आपका संचित कर्म है, जो प्रारब्ध के रूप में आपको भोगना पड़ रहा है। मनुष्य के कर्म बिना फल दिए समाप्त नहीं होते हैं। मनुष्य यदि दुख भोग रहा है तो समझ लेना चाहिए कि उसका पाप कर्म नष्ट हो रहा है। यदि मनुष्य सुख भोगता है तो समझ लेना चाहिए कि उसका पुण्य कर्म समाप्त हो रहा है। सुख दुख पाप कर्म एवं पुण्य कर्म से ही प्राप्त होते हैं। इसलिए मनुष्य को सदा सर्वदा सत्कर्म करने चाहिए। श्रीमद् भागवत कथा से ज्ञान प्राप्त होता है कि किस प्रकार से कर्म करने चाहिए। चतुर्थ दिवस की कथा में शास्त्री ने श्रद्धालुओं को ध्रुव चरित्र, प्रहलाद चरित्र,गजेंद्र मोक्ष, वामन चरित्र एवं भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की कथा श्रवण करायी और भक्तों ने धूमधाम से भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया। इस अवसर पर मुख्य जजमान एकता सूरी,सुरेश कुमार सूरी,पीयूष सूरी,ज्योति सूरी,तनिष्का सूरी,रेशम सूरी,दिनेश सूरी,हर्ष सूरी,राहुल सूरी, सोनिया सूरी,भजनलाल सूरी,श्री अखंड परशुराम अखाड़ा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक ने भागवत पूजन कर आशीर्वाद लिया।