हरिद्वार। श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परम अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि प्रेम से भगवान भी प्रकट हो जाते हैं और जिसका जिस पर सत्य स्नेह होता है वह उसे अवश्य मिलता है। वे आज राजा गार्डन स्थित हनुमान मंदिर सत्संग हॉल में भगवान श्रीकृष्ण के विवाह उत्सव की कथा का रसपान करवा रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण के रुक्मणी से विवाह का वृतांत सुनाते हुए स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती ने कहा कि माता रुक्मणी लक्ष्मी जी की अवतार थीं तो उनका विवाह तो भगवान श्रीकृष्ण के साथ होना ही था,लेकिन रुक्मणी का भाई अपनी बहन का विवाह अन्यत्र करना चाहता था। माता रुक्मणी का संदेश पाकर भगवान श्रीकृष्ण ने तुरंत द्वारका से प्रस्थान किया और माता रुक्मणी का वरण किया। आयोजकों ने विवाह उत्सव की झांकी सजाकर समाज को संदेश दिया कि समारोह पूर्वक किया गया पाणिग्रहण संस्कार सफल और चिरस्थायी होता है। विवाह समारोह में उपस्थित श्रद्धालुओं को व्यास पीठ से संबोधित करते हुए ज्ञानवृद्ध शतायु संत ने कहा कि पहले मंत्रों से सृष्टि का संचालन होता था,भगवान राम का अवतार भी मंत्र सृष्टि से ही हुआ था,लेकिन मनु एवं शतरूपा के बाद मैथुन सृष्टि का संचालन प्रारंभ हुआ जिसका शुभारंभ विवाह संस्कार से होता है। विधान पूर्वक किया गया पाणिग्रहण संस्कार चिरस्थाई इसलिए होता है कि सनातन धर्म के मंत्रों में आज भी इतनी शक्ति है कि परिवार और रिश्तेदारों की सहमति से संपन्न वैवाहिक बंधन मजबूत भी होते हैं और संस्कारित भी। उन्होंने सभी श्रोताओं का आवाहन किया कि सुखद वैवाहिक जीवन के लिए संविधान और संस्कार दोनों का सम्मान करें।आयोजन का हेतु बताते हुए उन्होंने बताया कि भगवान के विवाह उत्सव में सम्मिलित होने वाले परिवारों में कभी वैवाहिक अड़चनें नहीं आती हैं। सभी भगवत प्रेमियों ने धूमधामपूर्वक विवाह समारोह मनाने के बाद भगवान के दाम्पत्य स्वरूप की आरती उतारकर संपूर्ण सृष्टि में संस्कारिक विवाह समारोह संपन्न होने की कामना की। अंत में आयोजकों ने भी विवाह की भांजी प्रसाद स्वरूप बांटकर संपूर्ण समाज को सुखमय दांपत्य जीवन के लिए धर्म के सापेक्ष आचरण करने की सलाह दी।