हरिद्वार। खड़खड़ी स्थित श्री निर्धन निकेतन आश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथाव्यास महामंडलेश्वर स्वामी शिवानंद महाराज ने श्रद्धालु भक्तों को धु्रव व प्रह्लाद चरित्र की कथा का श्रवण कराया। कथाव्यास स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि मनु और शतरूपा के पुत्र राजा उत्तानपाद की दो रानियां थी सुरूचि और सुनीती। सुरूचि के पुत्र का नाम उत्तम और सुनीती के पुत्र का नाम धु्रव था। धु्रव एक बार पिता की गोद में बैठने लगे तो सुरूचि ने उन्हें गोद से उतार दिया। ध्रुव ने रोते हुए मां सुनीति को पूरी बात बतायी तो सुनीती ने ध्रुव को भगवान की शरण में जाने को कहा। पांच वर्ष का बालक ध्रुव राज्य छोड़कर वन में तपस्या के लिए चला गया। धु्रव को रास्ते में नारद मिले और ध्रुव को समझाने लगे कि मैं तुम्हें पिता की गोद में बैठाउंगा। लेकिन ध्रुव ने कहा कि पिता की नहीं अब परम पिता की गोद में बैठना है और कठिन तपस्या से उन्होंने भगवान को प्राप्त कर लिया। भक्त प्रहलाद की कथा सुनाते हुए कथाव्यास ने कहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रहलाद ने भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। भगवान ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। आश्रम परमाध्यक्ष स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज ने कहा कि धु्रव और भक्त प्रह्लाद की कथा शिक्षा देती है कि भगवान भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने के साथ उनकी रक्षा भी करते हैं। इसलिए सभी को विश्वास और श्रद्धा के साथ भगवान की भक्ति करनी चाहिए। इस अवसर पर स्वामी रविदेव शास्त्री,स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास,स्वामी शिवानंद भारती,महंत गुरमीत सिंह,स्वामी हर्षवर्द्धन,स्वामी चिदविलासा नंद,स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि सहित बड़ी संख्या में संत महंत और श्रद्धालु मौजूद रहे।
श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कराया धु्रव और प्रह्लाद चरित्र की कथा का श्रवण
हरिद्वार। खड़खड़ी स्थित श्री निर्धन निकेतन आश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथाव्यास महामंडलेश्वर स्वामी शिवानंद महाराज ने श्रद्धालु भक्तों को धु्रव व प्रह्लाद चरित्र की कथा का श्रवण कराया। कथाव्यास स्वामी शिवानंद महाराज ने कहा कि मनु और शतरूपा के पुत्र राजा उत्तानपाद की दो रानियां थी सुरूचि और सुनीती। सुरूचि के पुत्र का नाम उत्तम और सुनीती के पुत्र का नाम धु्रव था। धु्रव एक बार पिता की गोद में बैठने लगे तो सुरूचि ने उन्हें गोद से उतार दिया। ध्रुव ने रोते हुए मां सुनीति को पूरी बात बतायी तो सुनीती ने ध्रुव को भगवान की शरण में जाने को कहा। पांच वर्ष का बालक ध्रुव राज्य छोड़कर वन में तपस्या के लिए चला गया। धु्रव को रास्ते में नारद मिले और ध्रुव को समझाने लगे कि मैं तुम्हें पिता की गोद में बैठाउंगा। लेकिन ध्रुव ने कहा कि पिता की नहीं अब परम पिता की गोद में बैठना है और कठिन तपस्या से उन्होंने भगवान को प्राप्त कर लिया। भक्त प्रहलाद की कथा सुनाते हुए कथाव्यास ने कहा कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रहलाद ने भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। भगवान ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। आश्रम परमाध्यक्ष स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज ने कहा कि धु्रव और भक्त प्रह्लाद की कथा शिक्षा देती है कि भगवान भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने के साथ उनकी रक्षा भी करते हैं। इसलिए सभी को विश्वास और श्रद्धा के साथ भगवान की भक्ति करनी चाहिए। इस अवसर पर स्वामी रविदेव शास्त्री,स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास,स्वामी शिवानंद भारती,महंत गुरमीत सिंह,स्वामी हर्षवर्द्धन,स्वामी चिदविलासा नंद,स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि सहित बड़ी संख्या में संत महंत और श्रद्धालु मौजूद रहे।