हरिद्वार। भगवान का अवतार संसार में करुणा एवं प्रेम का वातावरण स्थापित करने के लिए होता है,जबकि साधारण व्यक्ति को कर्म करने के लिए जन्म लेना पड़ता है। भगवान के दरबार में न देर होती है,न ही अंधेर। जो भी विलंब होता है भक्त की पुकार में होता है ,भगवान अपने भक्त की एक आवाज पर उपस्थित होकर सहायता करते हैं। उक्त उद्गगार हैं श्रीगीता विज्ञान आश्रम के परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी के जिन्होंने राजा गार्डन स्थित हनुमान मंदिर सत्संग हॉल में श्रीकृष्ण अवतार की कथा का रसपान कराते हुए व्यक्त किये। भगवान श्रीकृष्ण को श्रीहरि का संपूर्णावतारी बताते हुए उन्होंने कहा कि भगवान ने एक साथ दो माता और दो पिताओं को संतान सुख से अविभूत किया। कंस,कुबलिया,पूतना और कालिया नाग को मारने के लिए तो बे किसी को भी भेज सकते थे लेकिन ग्वालबाल और गोपियों के साथ मिलकर प्रेम और सदाचार का जो वातावरण बनाया यही उनके अवतार का हेतु है। पुत्र की परवरिश में मां की ममता का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि मां का प्रभाव पुत्र के जीवन पर अलग से ही परिलक्षित होता है,मां यदि संत हो तो पुत्र योग्य होता है,ध्रूव और प्रहलाद इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। आदि जगतगुरु शंकराचार्य,स्वामी विवेकानंद और गांधी, सुभाष तथा पटेल के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि संत हो या असंत सभी वासना के बिस्तर से ही पैदा होते हैं लेकिन उनका पालन पोषण,शिक्षा दीक्षा और संगति ही उनको महान बनाती है। भगवान के वस्त्रावतार,गजेंद्र मोक्ष एवं नरसिंहा वतार की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भगवान भक्त की पुकार सुनते ही उसी रूप में सहायता करते हैं जिस रूप में भक्त की आवश्यकता होती है। भक्तों द्वारा श्रीकृष्ण अवतार की झांकी का आयोजन किया गया तथा बधाई एवं मंगल गीतों से पूरा वातावरण की कृष्णमय हो गया। कथा व्यास ने बताया कि जो भक्त भगवान के जन्मोत्सव में भाग लेते हैं उनके परिवार में सदैव खुशियों का संचार होता रहता है। अंत में सभी भक्तों में भगवान के बालरूप की आरती उतार कर विश्व कल्याण की कामना की।