श्रीमद्भागवत कथा सुनने से दूर होती है मन की व्यथा-स्वामी ऋषि रामकृष्ण

 


हरिद्वार। कथाव्यास महामंडलेश्वर स्वामी शिवानंद महाराज ने खड़खड़ी स्थित निर्धन निकेतन आश्रम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि श्रद्धा और विश्वास के साथ कथा का श्रवण करना चाहिए। भक्तों के कष्ट कथा के श्रवण मात्र से ही दूर हो जाते हैं। श्रद्धालुओं को महारास लीला की कथा श्रवण कराते हुए उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं। जो भी भगवान के इन गीतों को भाव से गाता है। उसका जीवन भवसागर से पार हो जाता है। उन्होंने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला के द्वारा ही जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हुआ। जीवन और ब्रह्म के मिलन को ही महारास कहते हैं। कथाव्यास ने श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण का मथुरा प्रस्थान,कंस का वध,महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या अध्ययन,कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद,उधव द्वार गोपियों को गुरू बनाना,द्वारका की स्थापना एवं रूक्मणी विवाह की कथा का श्रवण भी कराया। श्रद्धालुओं को आशीवर्चन प्रदान करते हुए निर्धन निकेतन आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी ऋषि रामकृष्ण महाराज ने कहा कि शरीर नश्वर है। इसलिए इसे विभिन्न रूपों में भागवत भजन के कार्य में लगाना ही उत्तम है। भागवत भजन के जरिए हम सत्य स्वरूप परमात्मा का ध्यान करते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत का अर्थ है भगवान में लीन हो जाना। कथा सुनने से मन की व्यथा दूर हो जाती है। सच्चे मन और भक्तिभाव से कथा सुने से साक्षात भगवान की कृपा की अनुभूति स्वयं ही होने लगती है। इस अवसर पर महंत दुर्गादास,महंत प्रहलाद दास,स्वामी ऋषिश्वरा नंद,स्वामी शिवानंद भारती,महंत रघुवीर दास,महंत सूरजदास,महंत बिहारी शरण,महंत जयराम दास, महंत गणेश दास,महंत सुतिक्ष्ण मुनि आदि संत महापुरूष व बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन मौजूद रहे।