ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन द्वारा प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी शिवभक्तों एवं कांवडियों की यात्रा सुविधाजनक हो इसलिये बाघखाल,राजाजी नेशनल पार्क में निःशुल्क चिकित्सा और पर्यावरण के प्रति जागरूकता शिविर का आयोजन किया जा रहा हैं। साथ ही वैराज से लेकर स्वर्गाश्रम तक जल की समुचित व्यवस्था के लिये कई जल मन्दिरों की व्यवस्था भी की जा रही हैं। गुरूपूर्णिमा के पावन दिवस से उपरोक्त सारी सुविधायें शुरू की जा रही हैं।परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार द्वारा पपेटशो के माध्यम से स्वच्छता बनाये रखने,सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने,यात्रा की याद में पौधा रोपण,जलस्रोतों और नदियों को स्वच्छ रखने का संदेश प्रसारित किया जायेगा।स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि कांवड यात्रा केवल एक यात्रा नहीं बल्कि जीवन यात्रा है। कांवड यात्रा न तो शो के लिये है और न शोर के लिये है बल्कि यह तो शान्ति और शिवत्व का प्रतीक है अतः ऊँ नमः शिवाय जाप के साथ के साथ अपनी यात्रा को पूर्ण करें। राजाजी नेशनल पार्क अनेकों प्राणियों का घर हैं उससे गुजरते हुये शोरगुल न करें। स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया कि‘बोल बम बोल बम’के साथ’कचरा कर दो जड़ से खत्म’का भी संकल्प लेंय अब शिवाभिषेक के साथ धराभिषेक भी जरूरी है। कांवड यात्रा,कचरा यात्रा नहीं है इसलिये पुरानी कांवड़,पुराने कपड़े और प्लास्टिक को गंगा जी में न डाले।स्वामी जी ने कहा कि ‘प्रकृति व संस्कृति के बेहतर सामंजस्य के लिये पारंपरिक ज्ञान व आधुनिक विज्ञान दोनों का बेहतर संतुलन जरूरी है। प्रकृति के पहरेदार और संस्कृति के पैरोकार बनकर श्रावण माह में रूद्राभिषेक के साथ धराभिषेक कर धरती को स्वच्छ,सुन्दर और प्रदूषण मुक्त बनाने में योगदान प्रदान करें।स्वामी जी ने कहा कि सावन माह, प्रकृति का सौंदर्य,आध्यात्मिक ऊर्जा के संचार और आत्मिक शक्ति के विस्तार का दिव्य समय है। प्रकृति का पुनर्जन्म और नवांकुर इसी माह से आरम्भ होता है। बाहर के वातावरण में हरियाली संर्वद्धन और आन्तरिक वातावरण में चौतन्य का जागरण होता है। मेघ अपना नाद सुनाते हैं,प्रकृति का अपना राग उत्पन्न होता है और मानव में आध्यात्मिक ऊर्जा का स्फुरण होता है।श्रावण माह में प्राकृतिक का सौन्दर्य जीवंत हो जाता है,कलकल करते झरनों का दिव्य नाद और धरती के गोद में छोटे-छोटे नन्हें बीजों से पौधों का जन्म होता है,उसी प्रकार मनुष्य के हृदय में भी सत्विकता से श्रद्धा का जन्म होता है। श्रद्धा से समर्पण की ओर बढ़ने की,आध्यात्मिकता यात्रा का दिव्य प्रतीक है कावंड यात्रा। यह यात्रा शिव साधना के साथ शिवत्व को धारण करने की है। आईये शिव साधना से शिवत्व की ओर बढ़े और इस धरा को स्वच्छ,प्रदूषण और सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त बनाने का संकल्प लें।
श्रावण माह शिवत्व के जागरण का माह-स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन द्वारा प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी शिवभक्तों एवं कांवडियों की यात्रा सुविधाजनक हो इसलिये बाघखाल,राजाजी नेशनल पार्क में निःशुल्क चिकित्सा और पर्यावरण के प्रति जागरूकता शिविर का आयोजन किया जा रहा हैं। साथ ही वैराज से लेकर स्वर्गाश्रम तक जल की समुचित व्यवस्था के लिये कई जल मन्दिरों की व्यवस्था भी की जा रही हैं। गुरूपूर्णिमा के पावन दिवस से उपरोक्त सारी सुविधायें शुरू की जा रही हैं।परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार द्वारा पपेटशो के माध्यम से स्वच्छता बनाये रखने,सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने,यात्रा की याद में पौधा रोपण,जलस्रोतों और नदियों को स्वच्छ रखने का संदेश प्रसारित किया जायेगा।स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि कांवड यात्रा केवल एक यात्रा नहीं बल्कि जीवन यात्रा है। कांवड यात्रा न तो शो के लिये है और न शोर के लिये है बल्कि यह तो शान्ति और शिवत्व का प्रतीक है अतः ऊँ नमः शिवाय जाप के साथ के साथ अपनी यात्रा को पूर्ण करें। राजाजी नेशनल पार्क अनेकों प्राणियों का घर हैं उससे गुजरते हुये शोरगुल न करें। स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया कि‘बोल बम बोल बम’के साथ’कचरा कर दो जड़ से खत्म’का भी संकल्प लेंय अब शिवाभिषेक के साथ धराभिषेक भी जरूरी है। कांवड यात्रा,कचरा यात्रा नहीं है इसलिये पुरानी कांवड़,पुराने कपड़े और प्लास्टिक को गंगा जी में न डाले।स्वामी जी ने कहा कि ‘प्रकृति व संस्कृति के बेहतर सामंजस्य के लिये पारंपरिक ज्ञान व आधुनिक विज्ञान दोनों का बेहतर संतुलन जरूरी है। प्रकृति के पहरेदार और संस्कृति के पैरोकार बनकर श्रावण माह में रूद्राभिषेक के साथ धराभिषेक कर धरती को स्वच्छ,सुन्दर और प्रदूषण मुक्त बनाने में योगदान प्रदान करें।स्वामी जी ने कहा कि सावन माह, प्रकृति का सौंदर्य,आध्यात्मिक ऊर्जा के संचार और आत्मिक शक्ति के विस्तार का दिव्य समय है। प्रकृति का पुनर्जन्म और नवांकुर इसी माह से आरम्भ होता है। बाहर के वातावरण में हरियाली संर्वद्धन और आन्तरिक वातावरण में चौतन्य का जागरण होता है। मेघ अपना नाद सुनाते हैं,प्रकृति का अपना राग उत्पन्न होता है और मानव में आध्यात्मिक ऊर्जा का स्फुरण होता है।श्रावण माह में प्राकृतिक का सौन्दर्य जीवंत हो जाता है,कलकल करते झरनों का दिव्य नाद और धरती के गोद में छोटे-छोटे नन्हें बीजों से पौधों का जन्म होता है,उसी प्रकार मनुष्य के हृदय में भी सत्विकता से श्रद्धा का जन्म होता है। श्रद्धा से समर्पण की ओर बढ़ने की,आध्यात्मिकता यात्रा का दिव्य प्रतीक है कावंड यात्रा। यह यात्रा शिव साधना के साथ शिवत्व को धारण करने की है। आईये शिव साधना से शिवत्व की ओर बढ़े और इस धरा को स्वच्छ,प्रदूषण और सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त बनाने का संकल्प लें।