हरिद्वार। नीलेश्वर महादेव मंदिर के वार्षिकोत्सव के अवसर पर मंदिर के परमाध्यक्ष स्वामी हरिदास महाराज के संयोजन में संत सम्मेलन का आयोजन किया गया। संत सम्मेलन को संबोधित करते हुए श्रीमहंत विष्णुदास महाराज ने कहा कि निर्मल जल के समान जीवन व्यतीत करने वाले संत महापुरूषों के सानिध्य में कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। उत्तराखंड देवभूमि और हरिद्वार संतों की भूमि है। हरिद्वार के संत महापुरूषों ने सनातन धर्म का जो स्वरूप विश्व पटल पर प्रस्तुत किया है। उससे प्रभावित होकर पूरी दुनिया सनातन धर्म को अपना रही है। उन्होंने कहा कि पौराणिक नीलेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का केंद्र है। नीलेश्वर महादेव मंदिर में सच्चे हृदय से की गयी आराधना को भगवान भोलेनाथ अवश्य स्वीकार करते हैं। स्वामी हरिदास महाराज अपने गुरूदेव ब्रह्मलीन महंत प्रेमदास महाराज की शिक्षाओं और उनके द्वारा दिए गए ज्ञान का अनुसरण करते हुए जिस प्रकार सनातन धर्म संस्कृति के उत्थान और मानव कल्याण में योगदान कर रहे हैं। वह अत्यन्त सराहनीय है। सभी को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। बाबा हठयोगी ने नीलेश्वर महादेव मंदिर के ब्रह्मलीन महंत प्रेमदास महाराज का भावपूर्ण स्मरण करते हुए कहा कि गुरू के प्रति श्रद्धा और विश्वास ही शिष्य की उन्नति मार्ग प्रशस्त करती है। स्वामी हरिदास महाराज अपने गुरूदेव के पदचिन्हों पर चलते हुए संत सेवा और मानव सेवा में अुतलनीय योगदान कर रहे हैं। स्वामी हरिदास महाराज ने सभी संत महापुरूषों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वह सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें गुरू के रूप में ब्रह्मलीन महंत प्रेमदास महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। पूज्य गूरूदेव से प्राप्त ज्ञान का अनुसरण करते हुए मंदिर की सेवा संस्कृति को आगे बढ़ाना ही उनके जीवन का लक्ष्य है। स्वामी विंदयवासिनी महाराज ने कहा कि संत महापुरूष और अखाड़ा परंपरा सनातन धर्म संस्कृति के आधार स्तंभ हैं। संतों ने सदैव मानव कल्याण में अग्रणी भूमिका निभायी है। समाजसेवी प्रमोद शर्मा व विमल चौधरी ने सभी फूलमाला पहनाकर सभी संत महापुरूषों का स्वागत किया। इस अवसर पर महंत दुर्गादास,महंत प्रह्लाद दास, महंत गोविंददास,महंत राघवेंद्र दास,स्वामी विंदयवासिनी,महंत सूरजदास,महंत रघुवीर दास, महंत गणेश दास,महंत प्रेमदास,महंत राजेंद्रदास,महंत नारायण दास पटवारी,स्वामी अमित दास ,स्वामी पवित्र दास,महंत जयराम दास सहित सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूष मौजूद रहे।