हरिद्वार। श्रावण मास के अन्तिम दिन श्रावणी पर्व पर ब्राह्मणों ने अपने यज्ञोपवीत बदले साथ ही नव युवाओं को यज्ञोपवीत धारण भी कराए गए। सुबह हरकी पैड़ी पर पुरोहितों हेमाद्रि स्नान कर नये यज्ञोपवीत धारण किए,साथ ही रक्षा सूत्रों को अभिमंत्रित किया। अभिमंत्रित किये गये यह रक्षा सूत्र ही अब वर्षभर पुरोहित अपने यजमानों की कलाई पर बांधेंगे। श्रीसूरतगिरि बंगला गिरिशानंदाश्रम कनखल में श्रावणी पर्व आश्रम के परमाध्यक्ष महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी विश्वेश्वरांनद गिरि महाराज के सानिध्य व आचार्य शिवपूजन के आर्चायत्व में मनाया गया। इस अवसर पर बटुकों का मुण्डन आदि संस्कार कर वैदिक रीति के अनुसार यज्ञोपवीत धारण कराया गया। इस अवसर पर नव यज्ञोपवीत धारण करने वाले बटुकों को आशीर्वचन देते हुए महामण्डलेश्वर आचार्य स्वामी विश्वेश्वरांनद गिरि महाराज ने कहाकि सनातन धर्म में यज्ञोपवीत संस्कार सोलह संस्कारों में महत्वपूर्ण संस्कार है। ब्राह्मण कुल में पैदा होने के लिए यज्ञापवीत अनिवार्य है। बिना यज्ञोपवीत धारण किए ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति संभव नहीं है। बिना यज्ञोपवीत धारण किए मां गायत्री की आराधना नहीं की जा सकती और बिना गायत्री की उपासना किए न तो कल्याण संभव है और न ही ज्ञान की प्राप्ति। उन्होंने नूतन यज्ञोपवीत धारण करने वाले ब्राह्मण बालकों ने यज्ञोपवीत के यम-नियम पूर्ण रूप से पालन करने का आह्वान किया। उन्होंने कहाकि ब्राह्मण के लिए शिखा, सूत्र धारण व ललाट पर तिलक करना उसके ब्रह्मणत्व की पहचान है। उन्होंने यज्ञोपवीत धारण करने वाले सभी बालकों को आशीर्वाद के साथ विधानानुसार भिक्षा भी दी। इस अवसर पर सैंकड़ों बालक,उनके परिजन ,आश्रम के संत-महात्मा व विद्यार्थी मौजूद रहे। यज्ञोपवीत संस्कार कोठारी उमानंद गिरि की देखरेख में सम्पन्न हुआ।
पुरोहितों ने हेमाद्रि स्नान कर नये यज्ञोपवीत धारण किए, रक्षा सूत्रों को अभिमंत्रित किया