हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय में सेवाज्ञ संस्थानम् द्वारा आयोजित दो दिवसीय युवा धर्म संसद के दूसरे दिन व्याख्यायान सत्र में ’व्यसन एवं मनोरोगों के समक्ष युवा’ विषय पर विचार रखते हुए उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.ए.के त्रिपाठी ने जीवन के तीन प्रमुख स्तंभों आहार,निद्रा और ब्रह्मचर्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज का युवा आहार के मूल सिद्धांतों से भटक रहा है। नियमित जीवन और प्राकृतिक ऊर्जा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि समुचित निद्रा के अभाव में जीवन नष्ट हो सकता है। उन्होंने कहा कि असफलता भी सीखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसे जीवन का अभिन्न हिस्सा मानकर सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ना चाहिए। दार्शनिक विचारक डा.अरुण प्रकाश ने कहा कि आज की शिक्षा प्रणाली समाज से युवाओं को विस्थापित कर रही है। उन्होंने जीवन में स्थायी मूल्यों के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता पर जोर दिया और युवाओं से अपनी चेतना का विस्तार करने का आह्वान किया। स्वच्छ भारत मिशन इंदौर के ब्रांड एम्बेसडर डा.पुनीत द्विवेदी ने युवाओं में बढ़ते तकनीकी व्यसनों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि तकनीकी व्यसन भारत की सांस्कृतिक जड़ों को नष्ट कर रहे हैं। एकल परिवार और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स द्वारा उत्पन्न मानसिक विकारों का उन्होंने विस्तार से उल्लेख किया और संगठित परिवार व्यवस्था को इस समस्या का समाधान बताया। दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कालेज की प्राचार्या प्रो.रमा ने युवाओं के भीतर देशप्रेम और आत्मबल को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने युवाओं को देश की प्रगति का मुख्य आधार बताते हुए कहा कि जो युवा मानसिक रूप से सशक्त होता है। वह कभी अकेला नहीं महसूस करता। द्वितीय सत्र में वैश्विक बाजारवाद से उत्पन्न सांस्कृतिक चुनौतियां विषय पर युवाओं से संवाद करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर ने बाजारवाद के प्रभाव और उसके चलते उत्पन्न सामाजिक और पारिवारिक संकटों पर चर्चा की। उन्होंने भारतीय युवाओं को बाजार वाद के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता बताई। कहा कि भारत के युवा बाजार को एक नई दिशा देने में सक्षम हैं। विचारक और लेखक प्रो.आनन्द सिंह ने कहा कि बीसवीं शताब्दी के पाश्चात्य विचारकों ने धर्म और रिलीजन के बीच के भेद को न समझते हुए भ्रम पैदा किया है। उन्होंने भारतीय ज्ञान और दर्शन परंपरा की ओर लौटने का आग्रह किया। कहा कि बाजारवाद ने हमारी सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर कर दिया है। सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.नीरजा गुप्ता ने साझा संस्कृति की महत्ता पर जोर दिया और कहा कि पाश्चात्य तकनीकी विकास ने हमें एकाकी बना दिया है। उन्होंने महर्षि पतंजलि के उदाहरण से युवा पीढ़ी को अपने सांस्कृतिक मूल्यों की ओर लौटने का संदेश दिया। समापन सत्र में आचार्य महामण्डेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी,आचार्य बालकृष्ण,सेवाज्ञ संस्थानम् के संरक्षक आचार्य मिथिलेश नन्दिनी शरण,पवन सिन्धी ने भी युवाओं को संबोधित किया। आचार्य मिथिलेश नन्दिनी शरण ने सभी वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन डा.पीयूष कुमार द्विवेदी,डा.प्रत्याशा मिश्रा और आशुतोष मिश्र ने किया।