मन ही मोक्ष और मुक्ति का कारण है: आचार्य करुणेश मिश्र,कई हरिद्वार गौरव सम्मान से सम्मानित

 


हरिद्वार। अध्यात्म चेतना संघ द्वारा आर्यनगर में आयोजित विराट श्रीमद्भगवद् गीता महोत्सव के अन्तर्गत गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पूर्व योग विभागाध्यक्ष तथा वर्तमान में देव  संस्कृति विश्वविद्यालय में अकादमिक डीन के पद पर कार्यरत प्रोफेसर ईश्वर भारद्वाज को गीतारत्न सम्मान से विभूषित किया गया। उनकी स्वास्थ्य ठीक नही होने के कारण उनकी ओर से यह सम्मान डा.भारद्वाज की धर्मपत्नी मिथलेश भारद्वाज ने ग्रहण किया। जबकि पिछले दिनों राजगीर (बिहार) में एशियाई कप महिला हाकी चैम्पियनशिप में लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हाकी टीम का हिस्सा रहीं हरिद्वार की अन्तर्राष्ट्रीय महिला हाकी खिलाड़ी श्यामपुर कांगड़ी की मनीषा चौहान,आर्ट आफ लिविंग फाउण्डेशन के उत्तराखण्ड प्रभारी,जीवन प्रशिक्षक व प्रेरकवक्ता तेजिन्दर सिंह कैंथ,भारतीय सनातन संस्कृति के प्रसारक शिवम् श्रोत्रिय,पत्रकार शशांक सिखौला,ज्योतिष विद्या विशेषज्ञ पं.पवन पंत तथा पुलिस प्रशासनिक अधिकारी जे.पी.जुयाल को हरिद्वार गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। सभी को अंगवस्त्र,सम्मान पत्र भी सौपें संस्था के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा मीडिया प्रभारी अरुण कुमार पाठक ने कार्यक्रम में इन सम्मानों की घोषणा करते हुए बताया कि,डा.ईश्वर भारद्वाज द्वारा केवल भारत में ही नहीं,बल्कि,विदेशों में भी योग को, लगभग हर स्तर पर,शैक्षणिक पाठ्यक्रम से जोड़ने में अपना अतुलनीय योगदान दिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के उन सभी 18अध्यायों का ही प्रसार और विस्तार है, जिनके नाम किसी न किसी योग के साथ जोड़कर निर्धारित किये गये हैं। उन्होंने जानकारी दी की गीतारन तथा हरिद्वार गौरव सम्मान दिए जाने का सिलसिला संस्था ने वर्ष 1917 से प्रारंभ किया था पतंजलि योगपीठ के महासचिव आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण इस सम्मान से पहली बार विभूषित हुए। समारोह के कथा व्यास आचार्य करुणेश मिश्र ने श्रीमद् भागवत सप्ताह के षष्ठम् दिवस कथाक्रम को विस्तार देते हुए विशेष रूप से गोवर्धन पूजन तथा रुक्मिणी विवाह के प्रसंगों का श्रवण कराया। इस दौरान सभी श्रद्धालुओं की भक्ति भावना तथा उमंग-उत्साह खूब धूमधाम से प्रदर्शित हुए। इसी दौरान अन्य अनेक प्रसंगों का भी संक्षिप्त श्रवण कराया। भागवत कथा गंगा में अवगाहन कराते हुए उन्होंने कहा कि हमारा मन ही बंधन और मुक्ति का कारण है यदि हम मन से स्वयं को मुक्त अनुभव करें तो हम मुक्त हैं और यदि बंधन में महसूस करते हैं तो स्वयं को बंधनों में बंधा हुआ पाते हैं। उन्होंने कहा कि,परमात्मा तो हमें नित्य निरंतर प्राप्त हैं ही और वह हमारे स्वयं के अंदर ही विराजमान हैं। हमारे ग्रंथ इस बात के साक्षी हैं की जिसने भी स्वयं के अंदर परमात्मा की खोज हेतु अपने भीतर की यात्रा की है,वह परमात्मा का हो गया है और उसने भगवान को इसी जन्म में प्राप्त कर लिया है। इस दौरान मुख्य यजमान गणेश शर्मा एवं श्रीमती निकिता शर्मा और सभी यजमान परिवारों के साथ-साथ बृजेश शर्मा,महेश चन्द्र काला,भूपेन्द्र कुमार गौड़,अरुण कुमार पाठक,विशाल शर्मा,अर्चना तिवारी,अशोक सरदार,रविन्द्र सिंघल,संगीत गुप्ता ,आभा गुप्ता,प्रेम शंकर शर्मा विकास शर्मा,योगेश शर्मा आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।